सभी को नमस्ते जी ।
मैं राजेश आर्यावर्त । मेरा जन्म पौराणिक परिवार में हुआ तो मूर्ती पूजना तो स्वभाविक ही था । मूर्ती पूजा के साथ मज़ार भी पूजता ।
17 वर्ष की आयु तक यही पाखण्ड चलता रहा । मेरे पिता जी उस समय हमारे गाँव के प्राथमिक स्कूल की सभा (पंचायत की तरफ़ से सभा होती थी )के सदस्य थे । ये सभा स्कूल में होने वाले कार्यों के लिए थी । पिता जी की मित्रता गाँव के स्कूल में कार्यरत अध्यापक आर्य सरदारा लाल जी से हो गयी । आर्य जी ने घर पर आना शुरू कर दिया । वो जब भी घर आते बस आध्यात्मिक बातें ही करते मैं भी बड़े ध्यान से सुनता । आर्य जी के कहने से मैंने भी रविवार को आर्य समाज में जाना शुरू कर दिया ।
आर्य समाज में यज्ञ होता और सभी अपने -2 घर को चलते बनते कभी किसी भी विषय पर कोई विचार – विमर्श नही ।
फिर 2006 में जीवन में एक नया मोड़ आया । करनाल से 2 अपरिचित व्यक्ति संजय आर्य और मुकेश आर्य हमारे घर आर्य समाज के 3 दिवसीय कार्यक्रम के बारे में बताने आये और वँहा आने का आग्रह किया । मैं अपने चाचा जी , आर्य सरदारा लाल जी और अपने परम मित्र धर्मदेव के साथ वँहा पंहुचा । वँहा पंहुचकर पता लगा की कार्यक्रम आर्य निर्मात्री सभा का था जिसमें हमें धर्म , ईश्वर , वेद , आत्मा तथा सन्ध्या और उपासना के बारे में पता चला ।
तब पहली बार सन्ध्या की थी । वास्तव में तभी पता चला की आर्य समाज क्या है ।
कोटि – कोटि नमन् आचार्य परमदेव जी को जिन्होंने युवकों को आर्य समाज से जोड़ने के लिये ये सत्र शुरू किये थे । आज आर्य निर्मात्री सभा के आचार्य दिन – रात एक कर इन सत्रों के माध्यम से युवाओं को जागृत करने में लगे है ।
मैं जीवन भर आभारी रहूँगा आचार्यों का
अगर आप भी राष्ट्र , ईश्वर , धर्म और अपने पूर्वजों के बारे में सत्य जानना चाहते है तो आर्य निर्मात्री सभा द्वारा आयोजित इन 2 दिवसीय सत्रों में अवश्य बैठे ।
आपका मित्र
राजेश आर्यावर्त